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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, May 18, 2011

पर्दे की हकीकत-हिन्दी शायरी (parde ki hakikat-hindi shayari)

इंसानों को भीड़ को
भेड़ों की तरह हांका जा सकता है,
सपने बेचना आना चाहिए।

लोगों की आंखें खुली रहें
पर देख न सकें,
कान बजते रहें
गाना सुर में हो या बेसुर
गाना आना चाहिए।

अपने होश को
जिंदा रखो हमेशा
कर लो दुनियां मुट्ठी में
ज़माने को बेहोश करना आना चाहिए।
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चाहे जो भाव खरीदो
सपने बाजार में बिकतें,
मगर सच के आगे नहीं टिकते हैं,
सौदागर खेलते हैं जज़्बातों से
उनके मातहत कलमकार
दाम लेकर ही ख्वाब लिखते हैं।

पर्दे की हकीकत
जमीन पर नहीं आती
भले ही अरमान पूर होते दिखते हैं।
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
writer and editor-Deepak Bharatdeep,Gwalior, madhyapradesh
http://dpkraj.blogspot.com
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