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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Tuesday, November 30, 2010

आसमान के सितारों पर यकीन नहीं रहा-हिन्दी व्यंग्य शायरी (asaman ke sitaron par yakeen nahin rahaa-hindi vyangya shayri)

धरती पर घूमते सितारों के चमकने की
असलियत जान ली,
जिन्होंने कुछ उधार पर तो
कुछ लूट पर अपनी
जेब भरने की ठान ली,
इसलिये आसमान के
सितारों पर भी यकीन नहीं रहा।
सोचते हैं
अपनी गलतफहमी में ही
बरसों तक यह कैसा भ्रम सहा।
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वह लुटेरे हैं या व्यापारी
पहचानना मुश्किल है,
दौलत से मिली शौहरत ने
मशहूर कर दिया उनको
पर पता लगा कि
हमारी तरह ही उनका भी मामूली दिल है।
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
writer and editor-Deepak Bharatdeep,Gwalior, madhyapradesh
http://dpkraj.blogspot.com

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Saturday, November 20, 2010

भलाई का धंधा आजकल चोखा है-हिन्दी व्यंग्य कविता (bhalai ka dhandha aajkal chokha hai-hindi vyangya kavita)

पूरे ज़माने की तरक्की करने का दावा
अपने आप में बस, एक धोखा है,
बिक जाता है आम इंसानों के बीच
यह नारा केवल वादों की कीमत पर
भलाई का धंधा आजकल बहुत चोखा है।
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एक धोखा देकर चला गया
दूसरा विश्वास निभाने का वादा लेकर आया,
उसने धोखा दिया तो
पहला फिर दिल औद दल बदल का आया,
अपने चेहरे पर उसने नया नकाब लगाकर,
जुबां पर नया वादा सजाया,
इस तरह सिंहासन का चक्र
भलाई के धंधे में समाया
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
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Tuesday, November 16, 2010

रोकर या हंसकर सब सह लें-हिन्दी व्यंग्य कविता (rokar ya hanskar sab sah len-hindi vyangya kavita)

भ्रष्टाचार के विरुद्ध अभियान
जो छेड़ा उन्होंने तो देखा
घपलों और घोटालों से
अटा पड़ा देश था,
समझ में नहीं आया कि
देश में है लफड़ा है या
लफड़े में पड़ा देश था।
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आओ देश में फैले भ्रष्टाचार
पर कुछ अपनी बात कह लें,
कभी कभी तो मौका मिलता है
अपनी बात कहने का
वरना तो अपनी आदत है
रोकर या हंसकर सब सह लें।
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
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Saturday, November 13, 2010

सस्ता है यकीन उनका-हिन्दी शायरी (sasta hai yakeen unka-hindi shayari)

वफदारी का वादा कर
सभी मुकर जाते हैं,
सस्ता है यकीन उनका
कौड़ियों में बेच देते हैं,
अपनी इज़्जत की कीमत
उनकी खुद की नज़र में ही कम है,
इसलिये सस्ते में बेचकर
गद्दारों की जमात में बैठ जाते हैं।
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आंखों से देखते हैं
पर अक्ल से अंधे हैं,
आज़ाद दिखते हैं राजा होकर भी
मगर उनके हाथ
प्रायोजकों से बंधे दिखते हैं।
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
writer and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior, madhyapradesh
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Friday, November 12, 2010

खतरनाक चेहरा और खूबसूरत नकाब-हिन्दी व्यंग्य क्षणिका (khatarnak cherha aur khubsurat nakab-hindi vyangya kavita)

काले पैसे का खतरनाक चेहरा
ओढ़ लेता है
आकर्षक इमारतों, हरे भरे बगीचों
और चमचमाती कारों का खूबसूरत नकाब,
देश की तरक्की जरूरी है
आम इंसानों की गरीबी को
कुचल कर निकल जाये
कोई फर्क नहीं पड़ता
दुनियां में देश का नाम चमकना चाहिए जनाब!
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
writer and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior, madhyapradesh
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Wednesday, November 10, 2010

कितने दिन तक कितने भ्रम-हिन्दी शायरी (kitne din tak kitane bhram-hindi shayari)

वह शिखर पर खड़े थे
बहुत ऊंचे कद्दावर दिखाई देते रहे,
आम इंसानों के महान संदेश हो गये,
जो शब्द उन्होंने अपनी जुबान से कहे।
जो नीचे आये तो
उनका चाल चलन देखकर हुआ अहसास
कद के बहुत छोटे हैं
उससे भी ज्यादा छोटी है उनकी सोच
हैरान है अब उनको देखकर
कितने दिन तक कितने भ्रम हमने सहे।
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
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Monday, November 1, 2010

वासना कभी प्रेम नहीं होती-हिन्दी कविताऐं (vasna kabhi premi nahin hoti-hindi kavitaen)

ज़माने को बदलकर रख देंगे, यह ख्याल अच्छा है,
जो सोचता है यह इंसान, उसका दिमाग बच्चा है।
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भीड़ का इंतजार न करें, अपनी राह चलते रहें।
खुद की जंग खुद लड़ो, भेड़ों के झुंड से बचते रहें।
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तरक्की के रास्ते चमकदार हैं, पर तबाही की तरफ भी जाते हैं।
कपड़े कितने भी सफेद हों, चरित्र के दाग नहंी छिप पाते हैं।
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वासना कभी प्रेम नहीं होती, यह आग जला कर बनाती राख।
शरीर के जख्म देखे ज़माना, आंखें रोती देखकर डूबती साख।
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
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