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Thursday, July 23, 2009

जवानी दीवानी और बुढ़ापा-हास्य व्यंग्य कविता (javani divani aur budhapa-hindi hasya kavita)

जब वह जवान थे
तब तक लिये खूब लिये उन्होंने मजे
अब बुढ़ापे में नैतिक चक्षु जगे।
किताबों में छिपाकर खूब पढ़ा यौन साहित्य
जब मन में आया
वयस्कों के लिये लगी फिल्म देखने
स्कूल छोड़कर भगे।
अब बुढ़ापे में आया है
समाज का ख्याल
उठा रहे अश्लीलता का सवाल
मचा रहे धमाल
युवाओं को संयम का उपदेश देने लगे।
.............................
फिल्म और किताब पर
उनको समाज हिलता नजर आता है।
भले अपनी जवानी में
नैतिकता का मतलब न समझा हो
बुढ़ापे में जवानों को समझाने में
कुछ अलग ही मजा आता है।

.....................
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